Rani padmavati kaun thi, Kya hua tha rani ke saath

आज हम उस वीरांगना के बारे में जानने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने जीवन और सम्मान की बीच अपने सम्मान को सर्वोपरि दर्जा दिया, और अपने मान प्रतिष्ठा की सुरक्षा के लिए खुद को मौत के हवाले कर दिया।

आप सब का स्वागत है इस ब्लॉक में, चलिए उस वीरांगना के बारे में विस्तार से कहानी के माध्यम से समझते हैं। आज हम पद्मावती के बारे में जानने वाले हैं जिन्हें पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है ।

यह उस समय की बात है जब दिल्ली पर सुल्तान अपना हुकूमत चलाया करते थे (12वीं और 13 वी सदी)। सुल्तानों ने शक्ति और सल्तनत विस्तार के लिए हिंदू राजाओं पर आक्रमण करना शुरू कर दिया, जिसके कारन आए दिन हिंदू राजाओं को चुनौतियों के लिए तैयार रहना पड़ता था।

इनमें से ही एक बलशाली और स्वाभिमानी राजा थे, राजा रावल रतन सिंह जो चित्तौड़गढ़ के शासक थे। मेवाड़ इनकी राजधानी थी, जहाँ की किले की सुरक्षा व्यवस्था अभेद थी।
दिल्ली सल्तनत के सुल्तान, अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती और उनके राज्य को पाने के लिए चित्तोड़ पर आक्रमण किया । राजपूत और उनके प्रदेश जिन्हें जीत पाना मुगलों के लिए असंभव था।

लेकिन अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ राज्य को जीत कर राजपूतों पर जीत के सुबूत ऐतिहासिक पन्नों में दर्ज करवादिया । कुछ विद्वानों ने इस कहानी को मिथ्या बताया और कहा यह एक मात्र कल्पना थी जिसे मुगल सच नहीं कर पाए तो कहानी बना कर अपने किताबो में छपवा दिया।

दिल्ली सल्तनत के सुल्तान, अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती और उनके राज्य को पाने के लिए चित्तोड़ पर आक्रमण किया । राजपूत और उनके प्रदेश जिन्हें जीत पाना मुगलों के लिए असंभव था। अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ राज्य को जीत कर राजपूतों पर जीत के सुबूत ऐतिहासिक पन्नों में दर्ज करवादिया ।

कुछ विद्वानों ने इस कहानी को मिथ्या बताया और कहा यह एक मात्र कल्पना थी जिसे मुगल सच नहीं कर पाए तो कहानी बना कर अपने किताबो में छपवा दिया।

आखिर कौन थी पद्मावती , क्या कहानी है उनकी?

इतिहास पद्मावती की कहानी के माध्यम से क्या सीख देना चाहता है?
जिस तरह एक आम इंसान का बचपन होता है उसी प्रकार पद्मावती का बचपन था। हालांकि राजा की पुत्री होने के कारण सामान्य से भिन्न था फिर भी बचपन तो बचपन ही होता है।

रानी पद्मावती के पिता का नाम गंधर्वसेन सिंघल और माता का नाम चंपावती था। बचपन में पद्मावती के पास हीरामणि नाम का एक तोता हुआ करता था जो इंसानों की तरह ही बोल सकता था।

रानी पद्मावती ने हीरामणि के साथ ही अपना अधिकतर समय बिताया था, सभी रानियों की तरह रानी पद्मावतीभी बहुत सुंदर थी। बड़े होने पर पिता गंधर्व सेन सिंघल ने अपनी पुत्री का स्वयंबर आयोजित किया। क्योंकि पद्मावती हिंदू राजपूत परिवार से ताल्लुख रखती थी, उनके पिता ने सभी हिंदू राजाओं को स्वयंवर के लिए आमंत्रित किया।
छोटे प्रदेश का राजा मलखान सिंह भी स्वयंवर में आया था, राजा रावल रतन सिंह विवाहित होने के बावजूद भी स्वयंवर में गए थे। इस काल में राजा एक से अधिक शादियां करते ताकि उनकी वंश को अधिक से अधिक उत्तराधिकारी प्राप्त हो सके।

राजा रावल रतन सिंह ने मलखान कोयुद्ध में हरा कर रानी पद्मावती से विवाह कर लिया, विवाह के पश्चात अपनी दूसरी पत्नी पद्मावती के साथ खुशी संपन्न रुप से चित्तौड़ लौट आये।

राजा रावल रतन सिंह के दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे, जिनमें से एक राघव चेतन था जो संगीत विद्या में निपूर्ण था। राघव चेतन के पास एक ऐसी कला थी जिसे उसने सब से छुपा कर रखा था। राघव को जादू का भी ज्ञान था।

चेतन अपनी बुरी प्रतिभा का उपयोग दुश्मनों को मार गिराने में किया करता था, 1 दिन राघव की बुरी आत्मा को बुलाने का घृणात्मक कृत्य पकड़ा जाता है।

इस बात का पता चलते ही राजा रावल सिंह ने उसका मुँह काला करवा कर गधे पर बिठाकर अपने राज्य से निष्कासित कर दिया। इस कठोर सजा के कारण राघव चेतन राजा रावल सिंह का दुश्मन बन गया।
अपने अपमान से नाराज होकर राघव चेतन दिल्ली चला गया, जहां उसने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। दिल्ली पहुंच कर राघव एक जंगल में रुक गया जा अक्सर सुल्तान शिकार के लिएआता था।

जब राघव चेतन को पता चला कि सुल्तान का शिकारी दल जंगल में प्रवेश कर चुका है तो उसने एक वाद्य यंत्र बजाकर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। जैसे ही मधुर ध्वनि सैनिको के कानो में पड़ी तो सभी सोच में पड़ गए इतने घने जंगल में इतनी मधुर बासुरी कौन बजा सकता है।

सुल्तान ने अपने सैनिकों को बांसुरी वादक को ढूंढ कर लाने को कहा, राघव चेतन को अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों नेगिरफ्तार कर लिया, और सुल्तान के सामने पेश किया । सुल्तान ने उसकी प्रशंसा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा, चालाक राघव ने तुरंत पूछा के आप मुझ जैसे मामूली कलाकार को अपने दरबार में क्यों बुला रहे हैं? जबकि आपके पास कई सुंदर नृत्यांगना और कलाकार हैं।

राघव की बात न समझ पाने पर सुल्तान ने राघव को साफ सब्दो में सब कुछ बताने को कहा। राघव ने रानी पद्मावती के बारे में सुल्तान को विस्तार में बताया जिसे सुन कर सुल्तान वासना से भर उठा। अपनी राजधानी पहुंचने के तुरंत बाद सुल्तान ने अपने सैनिकों को चित्तौड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया, क्योंकि उसका सपना उस सुंदरी को अपने हरम में रखना था।

सुल्तान बिना सोच विचार के चित्तौड़ पहुंच जाता है, वहां की सुरक्षा व्यवस्था देखकर वह चकित रह जाता है। उसे इस बात का अभाश हो जाता है की वह बिना राजनीती के जीत नहीं सकता। तत्पश्चात राजा रतन सिंह को यह संदेश भेजा कि वह रानी पद्मावती को अपनी बहन समान मानता है, और उनसे मिलना चाहता है।

सुल्तान की बात सुन कर राजा मान गए। रानी पद्मावती अपना चेहरा अलाउद्दीन खिलजी को कांच में दिखाने के लिए तैयार हो गईं। जब सुल्तान को पता चला कि रानी पद्मावती उससे मिलने को तैयार हो गईं है सुल्तान अपने चुनिंदा योद्धाओं के साथ किले में प्रवेश करता है। रानी पद्मिनी की सुंदर चेहरे को देख कर उसने तै करलिया, पद्मावती को अपनी रानी बना कर रहेगा।

वापस अपने शिविर लौटते समय अलाउद्दीन खिलजी ने राजा रतन सिंह को अपना बंदी बना लिया , और रानी पद्मावती की मांग करने लगा।

प्रधान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने, सुल्तान को हराने के लिए एक चाल चलते हुए उसे संदेशा भेजा 'अगली सुबह पद्मावती को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा।

अगली सुबह 150 पालकियां किले से अलाउद्दीन खिलजी के शिविर की ओर रवाना हो गई। पालकियां वहां रोकी गई जहां रतन सिंह को बंदी बनाया गया था। पालकियों को देख कर खिलजी को ऐसा लगा के बाकी के साथ रानी पद्मावती भी आई होंगी। लेकिन पालकियों में ना तो रानी थी और ना ही दासियाँ, उसमें से अचानक पूरी तरह सशस्त्र सैनिक निकले, सैनिको ने राजा रतन सिंह को छुड़ा लिया और सुल्तान के घोड़े चुराकर तेजी से किले की ओर भाग गए।

गोरा इस मुठभेड़ में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ और बादल ने रतन सिंह को सुरक्षित किले में पहुंचा दिया। जब सुल्तान को इस बात की खबर हुई तो गुस्सैल सुल्तान ने सैनिकों को चित्तौड़ पर आक्रमण करने का आदेश दे डाला।

सैनिको ने किले में प्रवेश करने की बहुत कोशिश की किंतु नाकाम रहे। सुल्तान ने किले के चारो और घेरा बंदी कर दिया और उसके सैनिक छिप छिप कर किले के रक्षकों को मारने लगे। धीरे धीरे रतन सिंह की संसाधन और सैन्य व्यवस्था की स्थिति चरमराने लगी। रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और स्वयं ही युद्ध भूमि में उतर गए, वीरता से लड़ते लड़ते राजा वीर गति को प्राप्त हो जाते हैं।

यह खबर रानी पद्मावती तक पहुंची, उन्हों ने सोचा सिकंदर की सेना भीतर आकर पुरुषों को मार डालेगी और सभी स्त्रियों को अपने साथ ले जाएगी। रानी के समक्ष दो विकल्प थे या तो वह जौहरके लिए प्रतिबद्ध हो जाए या फिर प्रतिद्वंदी सेना के समक्ष अपना निरादर सहे।

जौहर क्या है ?

एक प्रक्रिया जिसमे स्त्री को पुरुष वग के हार जाने पर खुद को हरा हुआ समाज आत्म दाह करलेने की आजादी थी। यह जानकर आपको बड़ा दुख होगा कि सभी रानियों का पक्ष जौहर की तरफ ही था। जिसका अर्थ होता है खुद ख़ुशी कर लेना। एक विशाल चिता जलाई गई, जिसमें रानी पद्मावती के साथ सभी रानियों ने आत्मदाह कर लिया और दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गए।

तत्पश्चात सभी पुरुषों केसरिया वस्त्र धारण करके दुश्मनों से तबतक मुकाबला किया जब तक की सभी समाप्त नहीं हो गए। जीते हुए दल ने किले में प्रवेश किया और रानियों के सरीर की खाख उन्हें जित के फल स्वरुप प्राप्त हुई।

इस घटना को आज भी लोकगीतों में गाय जाता है, लाखो स्त्रियाँ और पुरुष इस दिन अपने आखो को नम कर रानी पद्मावती को याद करती हैं, जिहोने राजपूती छवि को कलंकित होने से बचाया।

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